शिक्षा की उम्र नहीं: जमशेदपुर में बुजुर्गों ने दी जिंदगी की पहली परीक्षा, नाती-पोतों संग पहुंचे परीक्षा केंद्र

जमशेदपुर: यह कहावत बार-बार साबित होती है कि “शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती”। पूर्वी सिंहभूम जिले में रविवार को आयोजित बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक जांच परीक्षा ने इसका जीता-जागता उदाहरण पेश किया। इस परीक्षा में ऐसे लोग भी शामिल हुए, जिनकी उम्र 50 से 60 वर्ष के बीच है और जिन्होंने जीवन में पहली बार कॉपी-कलम उठाकर परीक्षा दी।

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जिले के 100 परीक्षा केंद्रों पर करीब 25,000 अभ्यर्थियों के शामिल होने का लक्ष्य था। लेकिन कुल 13,343 परीक्षार्थी परीक्षा देने पहुंचे। इनमें 9,859 महिलाएं और 3,484 पुरुष शामिल थे। खास बात यह रही कि इनमें से लगभग 5,000 लोग ऐसे थे, जो 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं और अब तक पूरी तरह अनपढ़ रहे थे।

 

इन बुजुर्ग परीक्षार्थियों में कई ऐसे थे, जो अब दादा-दादी या नाना-नानी बन चुके हैं। कुछ तो अपने नाती-पोतों का हाथ पकड़कर परीक्षा केंद्र पहुंचे, तो कुछ व्हीलचेयर पर बैठकर भी हिम्मत नहीं हारे। पहले ये लोग बाजार जाकर दुकान का नाम तक नहीं पढ़ पाते थे और दूसरों पर निर्भर रहते थे। लेकिन अब उन्हें न केवल अक्षर ज्ञान हुआ है, बल्कि वे आत्मविश्वास के साथ जीवन की नई शुरुआत कर रहे हैं।

 

महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा रही। गांवों से आई कई महिलाएं कहती हैं कि पढ़ने-लिखने की चाह तो बचपन से थी, लेकिन घरेलू जिम्मेदारियों और परिस्थितियों के कारण कभी पढ़ाई का मौका नहीं मिला। अब सरकार की साक्षरता योजना के तहत उन्हें किताब और कक्षाएं मिलीं तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 

शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य सिर्फ पढ़ना-लिखना सिखाना नहीं, बल्कि जीवन को आत्मनिर्भर और बेहतर बनाना है। परीक्षा के बाद पास होने वाले अभ्यर्थियों को प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।

 

इस परीक्षा ने यह साबित कर दिया कि शिक्षा हासिल करने में उम्र बाधा नहीं होती। जमशेदपुर की यह तस्वीर न सिर्फ प्रेरणादायी है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि सीखने और आगे बढ़ने की शुरुआत कभी भी की जा सकती है।