रांची : केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में शुरू की गई फास्टैग वार्षिक पास स्कीम अब वाहन चालकों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है। जिस योजना को सुविधा और पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया था, वही अब हजारों वाहन मालिकों की जेब पर भारी बोझ बन गई है।

फास्टैग वाहन के आगे के शीशे पर लगाया जाता है। समस्या तब शुरू होती है, जब गाड़ी का शीशा टूट जाए या किसी कारणवश नया फास्टैग बनवाना पड़े। ऐसे में पहले से रिचार्ज किए गए वार्षिक पास का बैलेंस नए फास्टैग में ट्रांसफर नहीं होता। हैरानी की बात यह है कि इस प्रक्रिया के लिए फास्टैग पोर्टल पर कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है।
बड़ी परेशानी
वाहन मालिकों का कहना है कि उन्होंने वार्षिक पास के लिए ₹3,000 से अधिक की राशि जमा करवाई थी, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण यह रकम फंस गई है। गाड़ी बेचने के बाद भी फास्टैग में बची राशि का रिफंड नहीं मिल रहा। सबसे बड़ी समस्या यह है कि न तो बैंक और न ही फास्टैग ऑपरेटर इस पर स्पष्ट जवाब दे रहे हैं।
देशभर में असर
यह समस्या केवल रांची या झारखंड तक सीमित नहीं है। देशभर में हजारों वाहन मालिक इस खामी से जूझ रहे हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि अब तक कई करोड़ रुपये फास्टैग कंपनियों के पास फंसे हुए हैं। वाहन चालकों का कहना है कि यह व्यवस्था सुविधा से ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है।
शिकायतें और मांग
कई वाहन मालिक इस मुद्दे पर शिकायत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया है। वाहन मालिकों ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से मांग की है कि पोर्टल पर ऐसा विकल्प जोड़ा जाए, जिससे—
- डुप्लीकेट फास्टैग जारी होने पर बैलेंस नए फास्टैग में ट्रांसफर हो सके।
- गाड़ी बेचने के बाद जमा राशि का रिफंड मिल सके।
लोगों का कहना है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह स्कीम लाभ की बजाय आम जनता के लिए बोझ साबित होगी।