नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बच्चों में यौन शिक्षा को लेकर अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक जराथे की पीठ ने कहा कि बच्चों को यौन शिक्षा कम उम्र से दी जानी चाहिए, सिर्फ कक्षा 9 से शुरू करना पर्याप्त नहीं है। अदालत का यह बयान एक 15 वर्षीय किशोर को जमानत देते समय आया, जिस पर दुष्कर्म और गंभीर यौन हमले जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यौन शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को न केवल जैविक और हार्मोनल बदलावों के बारे में जानकारी देना है, बल्कि उन्हें सही और गलत के बीच फर्क समझाने, आत्म-सुरक्षा की भावना विकसित करने और यौन अपराधों से बचने के लिए तैयार करना भी है। कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चों को पहले से ही सही जानकारी दी जाए, तो कई बार वे गलत परिस्थितियों में फंसने से बच सकते हैं।
यह टिप्पणी उस समय आई जब उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को एक हलफनामे में बताया कि राज्य में यौन शिक्षा केवल कक्षा 9 से 12 तक दी जाती है और यह एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम के अनुसार है। इस पर कोर्ट ने असंतोष जताते हुए कहा कि किशोरों में हार्मोनल परिवर्तन 10-12 साल की उम्र से ही शुरू हो जाते हैं, इसलिए जागरूकता भी उसी उम्र से शुरू होनी चाहिए।
अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करे जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि राज्य में यौन शिक्षा को उच्च माध्यमिक स्तर पर किस प्रकार लागू किया जा रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर नीति तैयार की जानी चाहिए ताकि पूरे देश में बच्चों को सही समय पर यौन शिक्षा मिल सके।
सामाजिक असर और जरूरी बहस की शुरुआत
यह निर्णय ऐसे समय आया है जब देश में किशोरों द्वारा यौन अपराधों में कथित संलिप्तता के कई मामले सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि समय पर और सही यौन शिक्षा बच्चों को जागरूक नागरिक बनने में मदद कर सकती है और समाज में यौन अपराधों की रोकथाम में भी सहायक हो सकती है।