Ranchi Tiger Rescue : रांची से रेस्क्यू बाघ को पलामू टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया, नाम रखा गया ‘किला बाघ’

पलामू/रांची – झारखंड के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को उस वक्त एक बड़ी सफलता मिली जब ‘किला बाघ’ के नाम से चर्चित एक नर बाघ को गुरुवार सुबह पलामू टाइगर रिजर्व (PTR) में सुरक्षित रूप से छोड़ दिया गया। यह वही बाघ है जो वर्ष 2023 में पलामू के ऐतिहासिक किला क्षेत्र में देखा गया था और जिसके बाद उसे इसी नाम से पहचाना जाने लगा।

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बुधवार रात रांची से पहुंचा बाघ

वन विभाग की देखरेख में बाघ को बुधवार देर रात रांची जिले के सिल्ली प्रखंड स्थित मारदू गांव से रेस्क्यू कर पलामू लाया गया। गुरुवार सुबह लगभग 7 बजे उसे जंगल के एक सुरक्षित और गोपनीय स्थान पर छोड़ दिया गया। यह अभियान पलामू टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक प्रजेशकांत जेना के नेतृत्व में पूरा किया गया।

ग्रामीण के घर में घुसा था बाघ

बाघ उस समय चर्चा में आया जब वह सिल्ली के मारदू गांव निवासी पुरंदर महतो के घर में घुस गया। ग्रामीणों की सतर्कता और वन विभाग की तत्परता से बाघ को सुरक्षित तरीके से पकड़ लिया गया। रेस्क्यू के बाद चिकित्सकों की टीम ने उसकी विस्तृत स्वास्थ्य जांच की, जिसमें वह पूरी तरह स्वस्थ पाया गया।

साढ़े चार साल का है यह नर बाघ

वन विभाग के अनुसार, यह एक वयस्क नर बाघ है जिसकी उम्र करीब साढ़े चार वर्ष है। फिलहाल बाघ पूरी तरह से सक्रिय और स्वस्थ है। उसकी गतिविधियों पर ट्रैकिंग सिस्टम के माध्यम से निरंतर निगरानी रखी जा रही है ताकि उसका व्यवहार और मूवमेंट परखी जा सके।

एक अद्भुत वन्यजीव यात्रा: 800 किमी लंबा सफर

‘किला बाघ’ की यह यात्रा केवल एक स्थानांतरण नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक वन्यजीव यात्रा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाघ मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से निकलकर हजारीबाग, चतरा, गुमला, और झारखंड के कई हिस्सों से होते हुए पश्चिम बंगाल के पुरुलिया तक गया। इस दौरान उसने करीब 800 किलोमीटर लंबा जंगल मार्ग तय किया, जो कि भारत के एक पुराने लेकिन निष्क्रिय पड़े टाइगर कॉरिडोर को दोबारा सक्रिय करने का संकेत है।

कॉरिडोर के पुनर्जीवन की दिशा में बड़ा कदम

यह कॉरिडोर जो दशकों से बाघों की गतिविधियों से दूर था, अब ‘किला बाघ’ के माध्यम से पुनर्जीवित हो गया है। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना न केवल जैव विविधता के लिए एक शुभ संकेत है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक निर्णायक मोड़ भी हो सकता है।

अधिकारियों की प्रतिक्रिया

उपनिदेशक प्रजेशकांत जेना ने कहा,

“बाघ को पूरी सुरक्षा के साथ जंगल में छोड़ा गया है और उसकी गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जा रही है। वर्षों बाद इस कॉरिडोर को एक बाघ ने फिर से सक्रिय किया है, यह वन विभाग और संरक्षणकर्ताओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।”