रांची:झारखंड की राजधानी रांची में राज्यभवन के समक्ष जारी अनुबंध शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के धरना प्रदर्शन ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। समायोजन की मांग को लेकर 86 दिनों से आंदोलनरत शिक्षकेत्तर कर्मियों ने सरकार के प्रति अपना विरोध दर्ज कराने के लिए आज सड़क किनारे पकौड़ा बेचकर अनोखा विरोध प्रदर्शन किया।

धरना स्थल पर कर्मचारियों ने हाथों में तख्तियां लेकर सड़क किनारे पकौड़े तले और आम जनता को बेचा। इस प्रतीकात्मक प्रदर्शन के जरिए उन्होंने सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की कि यदि जल्द उनकी समायोजन की मांगों पर सुनवाई नहीं हुई, तो वे रोज़गार छिनने के बाद जीविका के लिए मजबूरन सड़कों पर उतरकर छोटे-मोटे धंधे करने को विवश हो जाएंगे।
नौकरी पर मंडरा रहा संकट
प्रदर्शनकारी कर्मचारियों का कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत इंटरमीडिएट कक्षाओं को अंगीभूत महाविद्यालयों से हटाकर 10+2 विद्यालयों में समायोजित कर दिया गया है। इससे महाविद्यालयों में कार्यरत लगभग 450 अनुबंध शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की नौकरी पर संकट खड़ा हो गया है। कर्मचारियों का आरोप है कि छात्रों के समायोजन की प्रक्रिया पूरी कर दी गई, लेकिन जिन कर्मचारियों ने वर्षों सेवा दी, उनके भविष्य को लेकर सरकार अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई है।
अब तक बूट पॉलिश, यज्ञ, भिक्षाटन जैसे शांतिपूर्ण प्रयास
संघ के पदाधिकारियों ने जानकारी दी कि इससे पहले भी उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध जताया था—कभी बूट पॉलिश कर, कभी भिक्षाटन करके तो कभी यज्ञ-हवन के माध्यम से सरकार का ध्यान अपनी मांगों की ओर आकर्षित करने की कोशिश की। लेकिन अब तक सरकार ने कोई संतोषजनक पहल नहीं की है, जिससे कर्मचारियों में गहरी निराशा और आक्रोश व्याप्त है।
सरकार को दी चेतावनी
धरना स्थल पर रांची विश्वविद्यालय, कोल्हान विश्वविद्यालय सहित विभिन्न जिलों से आए कर्मचारियों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि जल्द ही उनकी मांगों पर सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया, तो आंदोलन और भी उग्र रूप ले सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी भी कीमत पर अपने अधिकारों से पीछे नहीं हटेंगे।
संघ की मुख्य मांगें:
- समस्त अनुबंध शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का अन्य सरकारी विद्यालयों या महाविद्यालयों में समायोजन।
- शिक्षा नीति के कारण हटाए गए कर्मचारियों के लिए वैकल्पिक नियुक्ति की स्पष्ट व्यवस्था।
- सरकार द्वारा कर्मचारियों से वार्ता कर स्थायी समाधान सुनिश्चित किया जाए।
झारखंड में लंबे समय से जारी यह धरना अब राज्य सरकार के लिए चुनौती बनता जा रहा है। देखना होगा कि क्या सरकार इस गंभीर और लगातार चल रहे आंदोलन पर अब कोई ठोस पहल करती है या नहीं।