रांची: अब दर्द से राहत पाने के लिए दवाओं पर निर्भर रहना जरूरी नहीं होगा। बीआईटी मेसरा के प्रोफेसर और प्रसिद्ध संगीतज्ञ डॉ. मृणाल पाठक ने संगीत चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ा है। उनके हालिया शोध से पता चला है कि 15 डेसीबल की तीव्रता पर बजाई गई बांसुरी की धुन शरीर में प्राकृतिक दर्द निवारक हार्मोन ‘बीटा एंडोर्फिन’ के स्त्राव को बढ़ाती है, जिससे दर्द में उल्लेखनीय कमी आती है।

यह शोध हाल ही में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘करेंट साइकियाट्री रिसर्च एंड रिव्यू’ में प्रकाशित हुआ है। डॉ. पाठक ने भारतीय शास्त्रीय राग भैरवी की धीमी लय पर आधारित बांसुरी की धुन स्विस एल्बिनो नस्ल के चूहों को सुनाई। परिणामस्वरूप उनके हाइपोथेलेमस-पिट्यूटरी प्रणाली में उल्लेखनीय सक्रियता देखी गई और बीटा एंडोर्फिन का स्तर बढ़ा। इसका सीधा असर यह हुआ कि चूहों की दर्द सहने की क्षमता में वृद्धि दर्ज की गई।
डॉ. मृणाल पाठक भारतीय ज्ञान प्रणाली और संगीत चिकित्सा में विशेषज्ञता रखते हैं। उनका मानना है कि यह शोध पारंपरिक भारतीय संगीत और आधुनिक विज्ञान के संगम का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। उन्होंने कहा, “बांसुरी की मधुर ध्वनि शरीर में सकारात्मक जैव-रासायनिक परिवर्तन लाती है, जिससे व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से राहत मिल सकती है।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन अब मानव शरीर पर भी लागू करने की योजना है, जिससे संगीत चिकित्सा को चिकित्सा विज्ञान में एक सशक्त विकल्प के रूप में शामिल किया जा सके। इस अध्ययन ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि भारतीय संगीत न केवल आत्मा को सुकून देता है, बल्कि शरीर के लिए भी औषधि साबित हो सकता है।