जमशेदपुर: एक ओर झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से मिलकर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के दावे कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में एक गरीब मरीज की तड़प-तड़प कर मौत ने सरकार के इन दावों की बोलती बंद कर दी है।

घटना बुधवार दोपहर की है। पोटका के कलिकापुर पोचापाड़ा निवासी वरुण भगत (38) को कुत्ते ने काट लिया था। हालत बिगड़ने पर परिजन उसे दोपहर करीब 1 बजे एमजीएम अस्पताल लेकर पहुंचे। लेकिन दुर्भाग्यवश चार घंटे तक न तो उसे बेड मिला, न ही इलाज, और न ही रांची रेफरल के लिए एंबुलेंस। अंततः वरुण ने फर्श पर ही दम तोड़ दिया।
परिजनों के अनुसार अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने कह दिया कि वरुण की हालत गंभीर है और उसे तुरंत रांची रिम्स रेफर करना होगा। इसके बाद परिजनों ने 108 नंबर पर कॉल कर एंबुलेंस की मांग की, लेकिन जवाब मिला – “एंबुलेंस अभी लाइन में है।” न तो अस्पताल प्रशासन ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था की और न ही प्राथमिक चिकित्सा। वरुण को सिर्फ एक इंजेक्शन देकर फर्श पर छोड़ दिया गया।
वरुण की पत्नी सविता भगत, फूट-फूटकर रोती हुई कहती हैं, “वो तड़पता रहा, हम गुहार लगाते रहे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। डॉक्टरों ने नजर तक नहीं डाली। अगर समय पर इलाज या एंबुलेंस मिल जाती, तो शायद आज वो जिंदा होता।”
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि झारखंड की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की नंगी तस्वीर है। सरकार द्वारा बार-बार एमजीएम को “आधुनिकीकरण” और “सुधार” के दावों की पोल इस मौत ने खोल दी है। बेड की भारी कमी, डॉक्टरों की उदासीनता और एंबुलेंस की अनुपलब्धता जैसे मुद्दे अब भी जस के तस बने हुए हैं।
वरुण भगत की मौत केवल एक जीवन की क्षति नहीं, बल्कि यह सवाल उठाती है कि आखिर गरीबों के लिए यह व्यवस्था कब संवेदनशील बनेगी? क्या सरकारी अस्पतालों में अब सिर्फ कागजों पर सुधार होता रहेगा? प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को इस मौत का जवाब देना होगा, क्योंकि अगर जवाबदेही तय नहीं हुई, तो हर दिन कोई न कोई वरुण यूं ही दम तोड़ता रहेगा।