JPSC की परीक्षा दे चुके कई अभ्यर्थियों को इन दिनों कुछ फर्जी कॉल आ रहे हैं। कॉल करने वाले लोग कहते हैं “आपका नाम मेरिट लिस्ट में नहीं है लेकिन अगर 10 लाख रुपये दोगे तो काम हो जाएगा।” इन कॉल्स से अभ्यर्थी बहुत परेशान हैं और अब उन्हें डर लग रहा है कि कहीं इस बार भी जेपीएससी में सारा खेल “सेटिंग-गेटिंग” का तो नहीं है।

अभ्यर्थियों का कहना है कि कॉल करने वालों के पास उनका नाम, मोबाइल नंबर, परीक्षा की जानकारी और परिवार की डिटेल्स तक है। इससे उन्हें शक है कि उनका डाटा कहीं से लीक हुआ है। उन्होंने बताया कि इस बार जेपीएससी ने कॉपी स्कैनिंग और मूल्यांकन का काम किसी थर्ड पार्टी एजेंसी से करवाया है। इससे डाटा लीक होने का खतरा बढ़ गया है।
मुख्य परीक्षा 22 जून से 24 जून तक हुई थी और इंटरव्यू के लिए 31 जुलाई तक लोगों को बुला भी लिया गया। मतलब सिर्फ 37 दिनों में सारी कॉपियां स्कैन, जांच और मेरिट लिस्ट तैयार कर ली गई। जबकि 5600 अभ्यर्थियों ने 6-6 विषयों की परीक्षा दी थी। हर विषय की कॉपी 48 पेज की होती है तो लाखों पन्नों को 37 दिन में स्कैन और जांच करना मुश्किल है।
कई गंभीर आरोप लगाए गए—
•बिना जानकारी दिए थर्ड पार्टी को जिम्मेदारी देना
•डिजिटल कॉपी जांच करना
•अयोग्य लोगों से कॉपी चेक कराना
•गोपनीय डाटा लीक होना
•बहुत तेज़ी से मूल्यांकन पूरा करना
•रिजल्ट पर भरोसा न होना
ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास और पूर्व मुख्यमंत्री ने इस मामले में राज्यपाल से जांच की मांग की है। इस परीक्षा के ज़रिए कुल 342 पदों पर भर्ती होनी है। इसके लिए इंटरव्यू में 864 लोगों को बुलाया गया है। अब कई अभ्यर्थियों ने इस मामले में कोर्ट का रुख किया है। उन्होंने परीक्षा की प्रक्रिया की जांच और पारदर्शिता की मांग की है।
Note: JPSC की परीक्षा में इस बार भी गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है। अभ्यर्थियों को फर्जी कॉल आ रहे हैं और डाटा लीक होने का खतरा दिख रहा है। अब देखना है कि सरकार और JPSC इस पर क्या कदम उठाती है।