सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि किसी भी कर्मचारी को यह मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह अपनी रिटायरमेंट की उम्र खुद तय करे। यह अधिकार सिर्फ राज्य सरकार के पास है और वह यह निर्णय समानता के सिद्धांतों का पालन करते हुए ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिटायरमेंट उम्र एक नीतिगत विषय है और इसमें कर्मचारी का कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं बनता। यदि जरूरत पड़ी तो राज्य सरकार समय से पहले रिटायरमेंट भी दे सकती है और अनिवार्य रिटायरमेंट भी लागू कर सकती है।
यह निर्णय उस याचिकाकर्ता के मामले में आया जो एक लोकोमोटर विकलांग इलेक्ट्रीशियन था। उसे 58 वर्ष की उम्र में रिटायर कर दिया गया जबकि दृष्टिहीन कर्मचारियों को 60 वर्ष तक सेवा की अनुमति दी गई थी। बाद में सरकार ने यह नीति वापस ले ली और सभी के लिए रिटायरमेंट उम्र 58 वर्ष ही तय कर दी।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि जब तक पुरानी नीति लागू थी तब तक उसे भी 60 वर्ष तक सेवा में बने रहने दिया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कोई भी कर्मचारी यह तय नहीं कर सकता कि वह कितनी उम्र तक सेवा में रहेगा।