हजारीबाग के सरकारी अस्पताल में मोबाइल टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन! बाबूलाल मरांडी ने स्वास्थ्य मंत्री को घेरा

हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की एक बेहद चौंकाने वाली और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। यहां कथित तौर पर बिजली की व्यवस्था ठप होने के कारण डॉक्टरों को मरीज का ऑपरेशन मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में करना पड़ा। इस घटना का वीडियो और तस्वीरें सामने आने के बाद राज्य की राजनीति में भी जबरदस्त हलचल मच गई है।

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प्राप्त जानकारी के अनुसार, केरेडारी सीएचसी में एक मरीज को आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता थी। लेकिन अस्पताल में उस समय न तो बिजली थी और न ही वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में जनरेटर ठीक से काम कर रहा था। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों के पास मरीज की जान बचाने के लिए मोबाइल टॉर्च का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। स्वास्थ्यकर्मियों ने जोखिम उठाते हुए ऑपरेशन किया, जिससे मरीज की जान तो बच गई, लेकिन सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई।

 

इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य सरकार और स्वास्थ्य मंत्री पर तीखा हमला बोला है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि “यह घटना झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की भयावह सच्चाई को उजागर करती है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद अस्पतालों की हालत बद से बदतर है। जब ऑपरेशन थिएटर में बिजली तक नहीं है, तो आम जनता का इलाज कैसे होगा?”

 

उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से इस पूरे मामले पर तत्काल जवाब देने और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की। मरांडी ने यह भी कहा कि यह केवल एक अस्पताल की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में कई सरकारी अस्पताल बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।

 

वहीं, इस घटना के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से जांच के आदेश देने की बात कही जा रही है। स्थानीय प्रशासन का दावा है कि तकनीकी खराबी के कारण बिजली बाधित हुई थी और मामले की विस्तृत जांच की जा रही है। साथ ही भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए वैकल्पिक बिजली व्यवस्था को मजबूत करने की बात भी कही जा रही है।

 

हालांकि, सवाल यह है कि क्या जांच और आश्वासन से सरकारी अस्पतालों की जमीनी हकीकत बदलेगी? मोबाइल टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन जैसी घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर झारखंड की आम जनता को सुरक्षित और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं कब मिलेंगी।