कुड़मी समुदाय का रेल-रोको आंदोलन: एसटी दर्जा और भाषा मान्यता की माँगों को लेकर उग्र प्रदर्शन

सरायकेला-खरसावां (झारखंड): संविधान की अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने और कुड़मालिकि भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता दिलाने की अपनी पुरानी माँगों को लेकर कुड़मी समुदाय ने शनिवार, 20 सितंबर को एक बार फिर रेल और सड़क जाम आंदोलन छेड़ दिया। यह आंदोलन झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में ज़ोरदार तरीके से देखने को मिला, जहाँ चक्रधरपुर रेल मंडल के सिनी रेलवे स्टेशन और जमशेदपुर के गालूडीह स्टेशन आंदोलन का मुख्य केंद्र बने।

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सुबह से ही हजारों की संख्या में समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में ढोल-नगाड़ों के साथ नारेबाज़ी करते हुए रेलवे ट्रैक पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों में महिलाएं, पुरुष और युवा बड़ी संख्या में मौजूद रहे। इस वजह से कई महत्वपूर्ण ट्रेनों का परिचालन पूरी तरह ठप हो गया, जिससे दूरगामी यात्री ट्रेनों के आवागमन पर गंभीर असर पड़ा। यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ा और कई ट्रेनें बीच रास्ते में ही खड़ी रहीं।

 

कुड़मी समाज के नेताओं ने साफ कहा कि उनकी मांगें वर्षों से लंबित हैं। कई बार सरकार को ज्ञापन सौंपने के बावजूद आज तक कोई ठोस पहल नहीं की गई। उनका कहना है कि जब तक केंद्र और राज्य सरकार उनकी माँगों पर ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक आंदोलन और भी उग्र किया जाएगा। नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन अगर सरकार ने अनदेखी की तो जन आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।

 

स्थिति को नियंत्रित करने के लिए रेलवे प्रशासन और जिला प्रशासन ने मौके पर पहुँचकर हालात संभालने की कोशिश की। सुरक्षा के मद्देनज़र रेलवे ट्रैक पर बड़ी संख्या में पुलिस बल और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की गई। प्रशासन ने आंदोलनकारियों से अपील की कि वे ट्रैक को जल्द से जल्द खाली करें और अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से सरकार तक पहुँचाएं।

 

गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब कुड़मी समाज ने इस तरह का आंदोलन किया है। इससे पहले भी पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में रेल और सड़क जाम कर समाज ने अपनी मांगें उठाई थीं। इस बार आंदोलन में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी विशेष रूप से देखने को मिली, जिससे यह साफ है कि समाज अपनी मांगों को लेकर बेहद संगठित और दृढ़ है।

 

कुड़मी समाज की यह जंग केवल सामाजिक पहचान की नहीं, बल्कि संवैधानिक मान्यता और अधिकारों की भी है। एसटी दर्जा और भाषा मान्यता का यह मुद्दा अब एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।