जमशेदपुर: सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता दीपक रंजीत ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर स्वच्छता सर्वेक्षण 2024–25 में “जमशेदपुर” शब्द के उपयोग पर कड़ा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि यह पुरस्कार वस्तुतः केवल टाटा कमांड एरिया (यानि जेएनएसी क्षेत्र) को मिला है, जबकि शेष शहर — विशेष रूप से मानगो, डिमना, उलीडीह, आजाद बस्ती जैसे क्षेत्र — आज भी सफाई और मूलभूत सुविधाओं के मामले में उपेक्षित हैं।

दीपक रंजीत ने अपने पत्र में 10 ठोस बिंदुओं के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि स्वच्छता पुरस्कार का श्रेय सीमित क्षेत्र तक सीमित रहे, ताकि बाकी क्षेत्रों की समस्याएं छुप न जाएं और उन्हें भी विकास का हिस्सा बनाया जा सके।
पत्र के प्रमुख बिंदु:
- “जमशेदपुर” शब्द पर पुनर्विचार:
पुरस्कार की घोषणा में “टाटा कमांड एरिया” या “JNAC क्षेत्र” का प्रयोग हो, ताकि वास्तविकता का सम्मान हो और भ्रम न फैले। - प्रशासनिक भिन्नता का सम्मान:
टाटा कमांड एरिया और मानगो क्षेत्र अलग-अलग प्रशासनिक ढांचे में आते हैं, उन्हें एक नाम से दर्शाना गलत है। - पूरा शहर हो समान रूप से एकीकृत:
टाटा स्टील की सेवाएं सिर्फ कमांड एरिया तक सीमित न रहकर आसपास के क्षेत्रों में भी विस्तार करें। - उपेक्षित क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाएं:
मानगो, उलीडीह आदि क्षेत्रों में अतिरिक्त संसाधनों और निगरानी के साथ सुधारात्मक योजनाएं बनाई जाएं। - मानसून में हो स्वच्छता सर्वेक्षण:
जलजमाव, निकासी और असल समस्याओं की परीक्षा के लिए यह मौसम सर्वाधिक उपयुक्त है। - सर्वेक्षण रिपोर्ट हो सार्वजनिक:
क्षेत्रवार अंक, आधार और कमियाँ जनता के सामने रखी जाएं, ताकि पारदर्शिता बनी रहे। - CSR हो पूरे शहर के लिए:
टाटा स्टील जैसे कॉर्पोरेट संस्थानों को केवल सीमित क्षेत्र में नहीं, बल्कि पूरे शहर में CSR के तहत काम करने की दिशा में प्रेरित किया जाए। - भ्रामक प्रचार पर रोक:
“जमशेदपुर को तीसरा स्थान मिला” जैसे अधूरे वाक्यांश वास्तविकता को छुपाते हैं, इससे जनता गुमराह होती है। - जनता की भागीदारी हो अहम:
सरकारी आँकड़ों के साथ-साथ ज़मीनी अनुभव और नागरिकों की राय भी सफाई मूल्यांकन का हिस्सा बने। - अलग कार्य योजना हो उपेक्षित क्षेत्रों के लिए:
डिमना, मानगो जैसे क्षेत्रों के लिए अलग से विकास रिपोर्ट और सफाई कार्य योजनाएं तैयार की जाएं।
“यह आलोचना नहीं, पीड़ा की अभिव्यक्ति है”:
दीपक रंजीत ने अपने पत्र में यह भी जोड़ा कि उनका उद्देश्य किसी की आलोचना करना नहीं, बल्कि हाशिए पर खड़े नागरिकों की आवाज़ को सामने लाना है। जब “जमशेदपुर” का नाम स्वच्छता में चमके, तो वह केवल कुछ इलाकों की सफलता नहीं, बल्कि पूरे शहर के नागरिकों की साझी उपलब्धि होनी चाहिए। यह मुद्दा शहर में स्वच्छता और प्रशासनिक पारदर्शिता को लेकर एक नई बहस को जन्म दे रहा है, और अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संबंधित प्रशासन इसपर क्या रुख अपनाता है।