सुप्रीम कोर्ट ने पोर्न बैन याचिका पर विचार से किया इनकार, नेपाल का उदाहरण दिया — कहा, ‘देखिए वहां क्या हुआ’

नई दिल्ली: देश में पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने इस दौरान पड़ोसी देश नेपाल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सोशल मीडिया एप्स पर बैन लगाने के बाद जो हालात बने, वे किसी से छिपे नहीं हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की कि किसी भी तरह का पूर्ण प्रतिबंध समाज और युवाओं की प्रतिक्रिया को देखते हुए बेहद संवेदनशील मुद्दा है।

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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी की। बेंच ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि इस मामले पर चार हफ्ते बाद फिर से सुनवाई होगी। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, ऐसे में यह संभव है कि इस मुद्दे पर अगली सुनवाई किसी अन्य बेंच के समक्ष हो।

 

याचिका में केंद्र सरकार से एक राष्ट्रीय नीति (National Policy) बनाने की मांग की गई थी ताकि इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फैल रहे अश्लील कंटेंट (पोर्नोग्राफी) पर प्रभावी रोक लगाई जा सके। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पोर्नोग्राफी का बढ़ता प्रसार बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

 

हालांकि अदालत ने कहा कि पूर्ण प्रतिबंध लगाने से कई सामाजिक और तकनीकी चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। अदालत ने नेपाल के हालिया उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वहां की सरकार ने TikTok और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाया था, तो GenZ और युवा वर्ग सड़कों पर उतर आया था। कोर्ट ने कहा — “नेपाल में बैन लगाने के बाद क्या हुआ, यह सबने देखा। किसी भी निर्णय से पहले समाज के व्यवहार और प्रभाव को समझना जरूरी है।”

 

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर जवाब दाखिल करने को कहा है और यह स्पष्ट किया है कि अश्लीलता व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। अब देखना होगा कि आने वाली सुनवाई में कोर्ट इस संवेदनशील विषय पर क्या रुख अपनाता है।