Hemp Clothing: अब भांग से बन रहा हैं कपड़े, कॉटन से है कई गुना टिकाऊ

भांग के गैर नशीले (नॉन रीक्रिएशनल) और नॉन मेडिसिनल फायदे की बात करें तो भांग ने कपड़ा उद्योग में क्रांति ला दी है। आज विश्व में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भांग के कपड़ों का कारोबार खड़ा हो गया है। जी हां भांग खाने की नहीं पहनने की विषय वस्तु है। भांग के तने से उच्च कोटि का तंतु फाइबर प्राप्त होता है जिससे निर्मित कपड़ा, कॉटन और कृत्रिम कपड़ा नायलॉन के मुकाबले 3 गुना मजबूत होता है। इसे हेम्प फैब्रिक कहते हैं।

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बात भांग से निर्मित कपड़े के टिकाऊपन की करे तो भांग के तंतु से निर्मित बनियान या अन्य परिधान कॉटन व अन्य कृत्रिम धागे के मुकाबले 10 साल अधिक चलता है। अन्य कपड़े के मुकाबले भांग का कपड़ा फाइबर बहुत हल्का होता है साथ ही मुलायम। भांग के कपड़े का कलर फेड आसानी से नहीं होता है। इसकी यूवी लाइट ब्लॉक करने की क्षमता बहुत अधिक है।

क्या होते हैं इसके फायदे?

भांग का कपड़ा एंटी फंगल एंटी बैक्टीरियल एंटी वायरल भी होता है अनेक स्टडी में यह सिद्ध हो रहा है। उच्च कोटि का स्किन फ्रेंडली है। चर्चा पर्यावरण लाभ की करें तो मानव निर्मित कृत्रिम धागे, प्राकृतिक सूती कपास के उत्पादन में केमिकल का इस्तेमाल अत्यधिक जल का दोहन होता है साथ ही कपास की खेती में महंगे पेस्टिसाइड्स के इस्तेमाल से पर्यावरण को क्षति पहुंचती है। वहीं भांग के पौधे की खेती बहुत कम जल में बगैर कीटनाशकों के इस्तेमाल से होती है। भांग पूरी तरह ईको फ्रेंडली पौधा है।

बाजार में बढ़ी मांग

आज भांग के कपड़े की बाजार में जबरदस्त मांग है चाहे भारतीय कपड़ा बाजार हो भांग के धागे के आयात के कारण आज भी 750 रुपए से लेकर 1500 रुपए प्रति मीटर इसके लिए आम भारतीय को खर्च करने पड़ रहे हैं। टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़ी हुई कंपनियां शत प्रतिशत हेम्प के नाम पर 50 प्रतिशत कृत्रिम फाइबर मिश्रित कपड़ा अन्य नायलॉन धागे से युक्त मिलावट के साथ बेच रही है।

भांग का कपड़ा कितना आरामदायक?

भांग के कपड़े की एक खासियत यह और है यह गर्मियों में ठंडा सर्दियों में गर्म हो जाता है। पानी में आसानी से भीगता नहीं है और हाइड्रोफोबिक है। भारत जैसे देश के लिए भांग के प्रधान एकदम मुफीद है। प्राचीन भारतीय कपड़ा उद्योग में भांग का इस्तेमाल परिधान में होता था। कालांतर में यह स्वदेशी उद्योग चौपट हो गया अब उसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है इससे पूर्व संघ और राज्य स्तर पर भांग की खेती को लेकर कानून बनाए जाने की जरूरत है।